Thursday, 8 September 2016

सुभाषितम् - अतिपरिचयादवज्ञा



अतिपरिचयादवज्ञा इति यद्वाक्यं मृषैव तद्भाति।
अतिपरिचितेप्यनादौ संसारेस्मिन्न जायतेवज्ञा

अन्वयः-
 अतिपरिचयाद्वज्ञा इति यद् वाक्यं तद् मृषाभाति। अतिपरिचिते अपि अनादौ स्मिन् संसारे वज्ञा न जायते

भावानुवादः-
     --परिचयातिरेकेन अवज्ञाभाव उत्पद्यते इति यद्वाक्यमस्ति, सत्यं प्रतिभाति; सुष्ठुपरिचिते अपि आदिहीने एतस्मिन् जगति तु अनादरो न प्ररोहति

हिन्दी-अनुवादः-
   --अति परिचय से अवज्ञा होती है ऐसा जो वाक्य है, वो झूठ जान पड़ता है; क्योंकि अतिपरिचित तथा अनादि इस संसार के विषय में लोगों को अनादर या तिरस्कार उत्पन्न नहीं होता है। 

2 comments:

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  2. अतिपरिचयात अवज्ञा' बिल्कुल सही है.
    संसार अनादि जरूर है पर भविष्य मे क्या होगा वह अपरिचित है. अपरिचित होने के कारण उसमे रस है.
    इसलिए यह उदाहरण समर्पक नही है.

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