अतिपरिचयादवज्ञा इति यद्वाक्यं मृषैव तद्भाति।
अतिपरिचितेऽप्यनादौ संसारेऽस्मिन्न जायतेऽवज्ञा ॥
अन्वयः-
“अतिपरिचयाद् अवज्ञा” इति यद् वाक्यं तद् मृषा एव भाति। अतिपरिचिते अपि अनादौ अस्मिन् संसारे अवज्ञा न जायते ॥
भावानुवादः-
--“परिचयातिरेकेन अवज्ञाभाव उत्पद्यते” इति यद्वाक्यमस्ति, तदसत्यं प्रतिभाति; सुष्ठुपरिचिते अपि आदिहीने एतस्मिन् जगति तु अनादरो न प्ररोहति ।
हिन्दी-अनुवादः-
--“अति परिचय से अवज्ञा होती है” ऐसा जो वाक्य है, वो झूठ जान पड़ता है; क्योंकि अतिपरिचित तथा अनादि इस संसार के विषय में
लोगों को अनादर या तिरस्कार उत्पन्न नहीं होता है।
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ReplyDeleteअतिपरिचयात अवज्ञा' बिल्कुल सही है.
ReplyDeleteसंसार अनादि जरूर है पर भविष्य मे क्या होगा वह अपरिचित है. अपरिचित होने के कारण उसमे रस है.
इसलिए यह उदाहरण समर्पक नही है.