Wednesday 7 September 2016

सुभाषितम् - घटो जन्मस्थानं



घटो जन्मस्थानं मृगपरिजनो भूर्जवसनं,
वने वासः कन्दैरशनमपि दुःस्थं वपुरिदम्।
अगस्त्यः पयोधिं यदकृत कराम्भोजकुहरे,
क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे ॥

अन्वयः-
   -- जन्मस्थानं घटः, मृगपरिजनः, भूर्जवसनं, वासः वने, अशनम् अपि कन्दैः, इदं वपुः दुःस्थं,
(तथापि) अगस्त्यः पयोधिं यद् कराम्भोजकुहरे अकृत, (तेन ज्ञायते यत्) महतां क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति उपकरणे न  (इति)॥

भावानुवादः-
    -- (अगस्त्यस्य) उद्भवस्थानं कुम्भोऽस्ति; हरिणीत्यादयः परिवारजनाः सन्ति; भूर्जरूपं वस्त्रमस्ति; निवासस्थानं अरण्यमस्ति; कन्दमूलादिकं भोजनमस्ति; शरीरं दुःखदायकमस्ति; तथापि तेन समुद्रः हस्तगह्वरे समाविष्टः। (अत उच्यते) महताम् क्रियासिद्धिः सत्वे भवति; केवलं उपकरणेन न भवति ।

हिन्दी-अनुवादः-
    -- स्वयं का जन्मस्थान घडा है, मृग इत्यादि कुटुम्बी जन है, भोजपत्र वस्त्र है, वन में निवास है। कंदमूल का भोजन है तथा अत्यंत दुःख देनेवाला शरीर है; फिर भी अगस्त्य मुनिने अपने कमल जैसी हथेली के खड्डे में समुद्र को समाविष्ट कर लिया था। सच में- महापुरुषों की क्रिया की सिद्धि इस पर निर्भर है कि उनके सत्व-पराक्रम कितना है; उनके पास क्या साधन-सामग्री है- उस पर नहीं।

2 comments:

  1. अति सुंदर अभिव्यक्ति

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  2. अनुपम श्लोक

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