Wednesday 7 September 2016

सुभाषितम् - असूयैकपदं मृत्युः



असूयैकपदं मृत्युरतिवादः श्रियो वधः।
अशुश्रूषा त्वरा श्लाघा विद्यायाः शत्रवस्त्रयः॥

अन्वयः-
   -- असूया एकपदं मृत्युः। अतिवादः श्रियो वधः। विद्यायाः त्रयः शत्रवः- अशुश्रूषा, त्वरा, श्लाघा (चेति)॥

भावानुवादः-
    --विद्यार्थिनः कृते असूया झटिति विद्यानाशकारिणी अस्ति। अमितभाषणमथवा अपभाषणं संपत्तिनाशकश्च; असेवा (गुरोः), विद्याभ्यासे अनावश्यकी त्वरा, आत्मश्लाघाश्च त्रय इमे विद्यायाः शत्रवः सन्ति।

हिन्दी-अनुवादः-
   --विद्यार्थी के लिए ईर्षा मृत्यु के समान है। अधिक या अपशब्द बोलना संपत्तिनाशक है। तथा सेवाविमुख होना, पढाई में जल्दबाजी करना, और स्वयं की प्रशंसा करना- ये तीन विद्या के शत्रु है।

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