Sunday 4 September 2016

सुभाषितम् - महाजनस्य संसर्गः



महाजनस्य संसर्गः कस्य नोन्नतिकारकः।
पद्मपत्रस्थितं वारि धत्ते मुक्ताफलश्रियम्॥

अन्वयः-
     --महाजनस्य संसर्गः कस्य उन्नतिकारकः न (भवति)? पद्मपत्रस्थितं वारि मुक्ताफलश्रियं धत्ते ॥

भावानुवादः-
     --महात्मनां सांगत्यं कस्य जनस्य (कृते) प्रवृद्धिकारकं न भवति? कमलपर्णे स्थितं जलं मौक्तिकमिव शोभते।                        

हिन्दी-अनुवादः-
     --सत्पुरुषों की संगति किसके लिए प्रगतिकारक नहीं होती? कमल के पर्ण पर स्थित जलबिंदु मोती के समान शोभा धारण करता है।

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