Sunday 4 September 2016

सुभाषितम् - विपत्तौ किं विषादेन



विपत्तौ किं विषादेन सम्पत्तौ हर्षणेन किम्।
भवितव्यं भवत्येव कर्मणामीदृशी गतिः॥


अन्वयः-
    -- विपत्तौ विषादेन किम्? सम्पत्तौ हर्षणेन किम्? भवितव्यं भवति एव। ईदृशी कर्मणां गतिः॥


भावानुवादः-
    -- विपत्तिकाले शोकेन को लाभः; सुखेषु अत्यन्तं सन्तोषेन किम्यदा यद्घटितव्यं तदा तत् घटत एव। कर्मणाम् गमनम् ईदृगेवास्ति।


हिन्दी-अनुवादः-
    -- कठिनाई आने पर दुःखी होने से क्या लाभ? और ऐश्वर्य मिलने पर हर्षित होने से क्या लाभ? जब जो होना है वो होना ही है! कर्मों की गति ही इस प्रकार की है। 

No comments:

Post a Comment