Thursday 5 December 2019

विदग्धा वाक् 121 - सन्तोषक्षतये

सन्तोषक्षतये पुंसामाकस्मिकधनागमः ।
सरसां सेतुभेदाय वर्षौघः स च न स्थिरः ॥

--सुभाषितमञ्जरी पु ५०९.५८६


सन्तोष-क्षतये पुंसाम् आकस्मिक-धन-आगमः । सरसां सेतु-भेदाय वर्षौघः सः च न स्थिरः ॥


पुंसां सन्तोषक्षतये आकस्मिकधनागमः । वर्षौघः सरसां सेतुभेदाय, सः च स्थिरः न ॥


मनुष्यों के संतुष्टि को नष्टकरने के लिए ही अकस्मात् धन आपड़ता है। तालाब के पुल को तोड़ने के लिए ही बारिश में बाढ़ होता है। वह स्थिर नहीं है।


మనుషుల సంతోషాన్ని హరించటానికే అకస్మాత్తుగా ధనం వచ్చిపడుతుంది. చెరువుల ఆనకట్టలు తెగిపోవటానికే వర్షాకాలపు వరద. అది స్థిరంగా నిలవదు.


The sudden arrival of money is for destroying the happiness of people. Flood in rainy season is for breaking bridges. It is not stable.

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