Thursday 5 December 2019

विदग्धा वाक् 107 - लुब्धमर्थेन गृह्णीयात्

लुब्धमर्थेन गृह्णीयात् क्रुद्धमञ्जलिकर्मणा ।
मूर्खं छन्दानुवृत्तेन तत्त्वार्थेन च पण्डितम् ॥

--सुभाषितसुधानिधिः पु. ८२.८५

लुब्धम् अर्थेन गृह्णीयात् क्रुद्धम् अञ्जलि-कर्मणा । मूर्खं छन्द-अनुवृत्तेन तत्त्वार्थेन च पण्डितम् ॥

लुब्धम् अर्थेन, क्रुद्धम् अञ्जलिकर्मणा, मूर्खं छन्दानुवृत्तेन, पण्डितं तत्त्वार्थेन च गृह्णीयात् ॥

लोभी को धन से, क्रोधित हुए व्यक्ति को हाथ जोड़कर नमन से, मूर्ख को उसी के इच्छा अनुरूप बरताव से, विद्वान को यथातथ सच्चाई से जीतना चाहिए।

లోభిని ధనంతో, కోపంతో ఉన్నవాడిని చేతులు జోడించి నమస్కారం చేసి, మూర్ఖుని అతడికి ఇష్టమైనట్టు ప్రవర్తించటం ద్వారా, విద్వాంసుని యథాతథం సత్యంతో గెలుచుకోవాలి.

One should win over a miser by money, the angry by holding hands together, a fool by doing according to him and a scholar by the reality.

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