Thursday 5 December 2019

विदग्धा वाक् 112 - गोशतादपि गोक्षीरं

गोशतादपि गोक्षीरं प्रस्थं ग्रामशतादपि ।
प्रासादादपि खट्वार्धं शेषं परविभूतये ॥

--सुभाषितमञ्जरी ४९१-५०४
 
गोशताद् अपि गोक्षीरं प्रस्थं ग्रामशताद् अपि । प्रासादाद् अपि खट्वार्धं शेषं परविभूतये ॥
 
गोशताद् अपि गोक्षीरं, ग्रामशताद् अपि प्रस्थं, प्रासादाद् अपि खट्वार्धं, शेषं परविभूतये (भवति)॥
 
सौ गायों से (बढ़कर) गाय का दूध है;  सौ गाँवों से (अधिक) एक छोटा सा (रहनेका) स्थान है; राजमहल से भी (बढ़कर) पलंग का आधा भाग है। बाकी सब दूसरों के भलाई के लिए है।
 
వంద ఆవులకన్నా ఒకదాని పాలు శ్రేష్ఠం. వంద ఊళ్ళకన్నా కాస్త చోటు నయం. భవంతికన్నా మంచంలో సగం మేలు. మిగిలిందంతా ఇతరుల సంక్షేమం కోసమే.

Cow’s milk is better than a hundred cows. A small piece of land is better than a hundred villages. Half of a bed is better than a palace. Everything else is for others’ welfare.

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