Tuesday 24 April 2018

सुभाषितम् - अजरामरवत् प्राज्ञो

अजरामरवत् प्राज्ञो विद्यामर्थं च चिन्तयेत्।
गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥

 
अन्वयः-
   -- प्राज्ञः अजरामरवत् विद्याम् अर्थं च चिन्तयेत्। मृत्युना केशेषु गृहीतः इव धर्मम् आचरेत् ॥

भावानुवादः-
  --प्राज्ञैः ‘अहम् अजरामरवत् भविष्यामी’ति धिया विद्यायाः, सम्पत्तेश्च प्राप्त्यर्थं चिन्तनं कर्तव्यम्। किन्तु, ‘यमेन अधुनैवाहं केशेषु गृहीतोस्मि’ इति मत्वा धर्मस्याचरणं कुर्यात्।

हिन्दी-अनुवादः-

  --समझदार मनुष्य को 'स्वयं अजर और अमर रहनेवाला है' ऐसा मानकर विद्या और संपत्ति प्राप्त करने के लिए सोचते रहना चाहिए । और मृत्यु ने ले जाने के लिए जैसे अभी ही केश पकड़े है- ऐसा मानकर (प्रत्येक क्षण का उपयोग करते हुए) धर्म का-सत्कर्म का आचरण करते रहना चाहिए।

6 comments:

  1. Could you please tell me the source of this verse?

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    1. https://www.wisdomlib.org/sanskrit/quote/mss/subhashita-378

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  2. बहुत सुंदर और उपयोगी जानकारी.
    धन्यवाद और शुभकामनाएं
    यह सुभाषित में ढुंढरहा था.
    आपसे मिल गया..!

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  3. Very nice blog spot....keep up the seva!

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